हाय मेरा चश्मा खो गया
भीड़ में ना जाने कब
मुझसे दूर हो गया
अपनी लापरवाही पे हम बड़ा पछ्ताए
दिखावटी नहीं थे हमने जो आंसू थे बहाए
मित्रों ने नाना प्रकार के दिलासे थे दिलाए
क्यूँ साथ ले कर गए थे अपने
यह सोच कर हम बड़ा पछ्ताएपर
थोड़ी ही देर में बिना चश्मे केहमें बड़े फ़ायदे नजर आए
जब तक चश्मा हमें ना मिल जाए
हम लैब कैसे जाएँ
रंगीन मॉनीटर हमारी आँखों में पानी है लाए,
सो,
माफ़ करना दोस्तों,
जो हम लैब न अ पाए,
कक्षा में बैठे थे हम सिर झुकाए,
शिक्षक ने पूछा ,क्या कलम नहीं लाए,
तो भला तुम क्यूं हो आए,
हमने तुरंत कहा
महोदय,हम चश्मा खो आए,
महोदय ने सहानुभूति थी जताई,
हमने अपनी पीठ थी थपथपाई,
यूँ कुछ दिन हमने बड़ी मौज मनाई,
पर जल्दी ही परीक्षा की घड़ी आई,
सबने हमें चश्में की याद दिलाई
पर
हम अब भी खुश थे भाई
उस चश्में का मॉडल भी तो हो गया था पुराना,
एक रत्ती भी हमें भाता ना था लगाना,
बाजार में एक नया मॉडल था आया
उसने हमें खूब था लुभाया
सो..अब हमें है नया चश्मा लगाना
उचित समझा हमनें पुराने को भुलाना.~ सुरभि कुमारी
Monday, April 2, 2007
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3 comments:
Very cute poem :-)
:D Funny post babes!!
Keep the good work flowing in. Aajkal badi stagnant ho gayee... dun let ur creativity hide in the piles of workload
Meri duayein sada aapke saath hain ;)
Its really very funny and cute...
i wear glasses and i can understand the feeling of losing the glasses and escaping the studies.Its really kool...
gud job surabhi...keep it up...
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